Thursday, November 13, 2014

tanu thadani तनु थदानी मैं तो अनपढ़ हूँ

दरक जाती है,
गुनगुनी सी मुस्कुराहट,
जब गौरेया बाज के पंजो में आती है !
टुथब्रश पर रखी जाती है पेस्ट की तरह,
फिर मटमैले पीले दाँतों पर मसली जाती है !
गांधी नोट से बाहर निकल नहीं रोयेगा ,
वैसे ही हँसता रहेगा ,
ये देख कर कि वो अंततः थूक दी जाती है !

किसी की चींख तब हकलाती  है ,
जब सुबकता है एक सपना ,
उस नन्ही बच्ची का ,
जिसका नाम तो कुछ भी हो सकता है ,
मगर पता इस अंतरिक्ष में घूमते देश के एक गाँव का ही होता है ,
जहाँ मिड डे मील के साथ स्कूल है ,
नहीं आते मास्टर
गायें बंधती हैं सरपंच की वहाँ ,
पूरे सुकून से गांव का कुत्ता वहाँ सोता है !

ये हम कहाँ रह रहें हैं ?
माँ कहते हैं जमीन को ,
खरीदते हैं फिर बेच देते हैं !
बड़े कायदे से गर्म गोस्त को खाते हैं ,
हड्डीयाँ फेंक देते हैं !
वो मासूम बच्ची ,
वो गौरेया ,
क्यों केवल गोस्त का टुकड़ा नजर आती हैं  ?
तुम भले मत शर्मिंदा होना मेरे पढ़े लिखे दोस्तों ,
मैं तो अनपढ़ हूँ गांव का ,
ये कैसे देश में सांस  ले रहा हूँ ,
मुझे तो बेहद शर्म आती है !


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